बाहुबल के सामने झुकी कांग्रेस! लालगंज सीट से आदित्य राजा ने वापस लिया नामांकन, अब शिवानी शुक्ला की BJP से सीधी टक्कर

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के बीच महागठबंधन में चल रही सीटों की रस्साकशी अब धीरे-धीरे सुलझती नजर आ रही है। वैशाली जिले की लालगंज विधानसभा सीट से बड़ी खबर सामने आई है। कांग्रेस उम्मीदवार आदित्य कुमार राजा ने सोमवार को अपना नामांकन वापस ले लिया। उनके इस कदम को गठबंधन धर्म निभाने और विपक्षी एकता को मजबूत करने की दिशा में बड़ा फैसला माना जा रहा है।

नामांकन वापस लेने के बाद आदित्य राजा ने कहा कि उनका यह फैसला किसी दबाव या व्यक्तिगत हित से प्रेरित नहीं है, बल्कि यह महागठबंधन की एकजुटता, बिहार की एकता और राहुल गांधी के विश्वास को बनाए रखने के लिए लिया गया है। उन्होंने कहा, “मैंने लोकतंत्र की धरती से गठबंधन धर्म निभाने की पहल की है। हमारा मकसद सत्ता की लड़ाई नहीं, बल्कि विचारधारा की जीत है।”

आदित्य राजा ने यह भी स्पष्ट किया कि महागठबंधन के अंदर कोई मतभेद नहीं है, बल्कि सभी का मकसद भाजपा को हराना और बिहार में जनहित की राजनीति को मजबूत करना है।

कांग्रेस ने शुरुआत में लालगंज सीट से आदित्य राजा को उम्मीदवार घोषित किया था, जबकि महागठबंधन की बड़ी पार्टी राजद ने इसी सीट से बाहुबली नेता मुन्ना शुक्ला की बेटी शिवानी शुक्ला को टिकट दे दिया था। इससे लालगंज सीट पर राजद और कांग्रेस आमने-सामने आ गए थे और गठबंधन में असहज स्थिति बन गई थी।

राजनीतिक समीकरणों के हिसाब से लालगंज सीट बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है। यहां व्यापारी वर्ग और अति पिछड़ा समुदाय के मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। अगर कांग्रेस और राजद दोनों मैदान में रहते, तो वोटों का बंटवारा निश्चित था, जिसका सीधा फायदा भाजपा को मिल सकता था।

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि आदित्य राजा ने समय रहते राजनीतिक समझदारी दिखाई। उनका नामांकन वापस लेना गठबंधन के हित में एक रणनीतिक कदम साबित हो सकता है।

आदित्य राजा के मैदान से हटने के बाद अब लालगंज में मुकाबला BJP के संजय सिंह और राजद की शिवानी शुक्ला के बीच सीधे होगा। दोनों उम्मीदवार अपनी-अपनी पार्टी के कद्दावर नेताओं के समर्थन से प्रचार में जुट गए हैं।

भाजपा ने संजय सिंह को फिर से टिकट दिया है, जो लालगंज से पिछले चुनावों में भी मजबूत प्रदर्शन कर चुके हैं। वहीं राजद की ओर से शिवानी शुक्ला नई लेकिन प्रभावशाली चेहरा मानी जा रही हैं, जिन्हें अपने पिता मुन्ना शुक्ला की राजनीतिक विरासत का लाभ मिलने की उम्मीद है।

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