बिहार की राजनीति ने फिर दिया बड़ा झटका — दिग्गज हारे, नए चेहरे चमके, नीतीश फिर बने खेल के निर्णायक

पटना। बिहार की राजनीति की सबसे बड़ी खासियत यही है कि जब आपको लगता है कि अब आप बिहार को पूरी तरह समझ चुके हैं—ठीक उसी वक्त वह आपको ऐसा राजनीतिक झटका देता है कि सारे अनुमान धरे रह जाते हैं। इस बार भी बिल्कुल ऐसा ही हुआ। जिन चेहरों की जीत के ढोल पीटे जा रहे थे, जिन पर भीड़ उमड़ रही थी, जिनके लिए हवा बनाई जा रही थी—उन्हीं में से कई दिग्गज इस चुनाव में बुरी तरह फेल हो गए। एग्जिट पोल से लेकर राजनीतिक विश्लेषण तक सबकुछ धराशायी हो गया।

इसी बीच राजनीतिक गलियारों में एक बात फिर गूंज उठी—मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वे बिहार की राजनीति के अश्वत्थामा हैं… हमेशा प्रासंगिक, हमेशा निर्णायक।

छपरा से सबसे बड़ा उलटफेर सामने आया, जहाँ RJD के स्टार उम्मीदवार खेसारी लाल यादव को करारी हार का सामना करना पड़ा। बीजेपी की छोटी कुमारी ने उन्हें मात देकर राजनीतिक गणित पूरी तरह बदल दिया।
महुआ में चर्चित मुकाबला रहा, जहाँ तेजप्रताप यादव को LJP के संजय सिंह ने बड़े अंतर से हरा दिया। यह हार RJD और महागठबंधन दोनों के लिए एक बड़ा संकेत बनकर उभरी।

मोकामा में बाहुबली अनंत सिंह का दबदबा फिर कायम रहा और 2005 से चली आ रही उनकी जीत की श्रृंखला इस बार भी बरकरार रही।
रघुनाथपुर में शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा शहाब विजयी रहे, जबकि सिवान में बीजेपी के मंगल पांडे ने RJD के वरिष्ठ नेता अवध बिहारी चौधरी को शिकस्त दी।

अलीनगर में बीजेपी की युवा चेहरा मैथिली ठाकुर ने ऐतिहासिक जीत दर्ज कर सबको चौंका दिया। वह इस सीट की सबसे कम उम्र की विधायक बनने जा रही हैं।
ब्रह्मपुर में शंभू यादव ने लोजपा के हुलास पांडे को हराया, जबकि दानापुर में बीजेपी के दिग्गज रामकृपाल यादव ने अपनी सीट बचाए रखी और RJD के रीतलाल यादव को मात दी।

बक्सर में पूर्व आईपीएस आनंद मिश्रा ने कांग्रेस के मुन्ना तिवारी को हराते हुए विधानसभा में एंट्री की।
तरारी में सुनील पांडे के बेटे विशाल प्रशांत ने अपनी मेहनत और जनसंपर्क के दम पर जीत सुनिश्चित की।
मांझी से रणधीर सिंह, वारिसलीगंज से अशोक महतो की पत्नी अनीता देवी, और लखीसराय से डिप्टी सीएम विजय सिन्हा ने रिकॉर्ड जीत हासिल की।

उधर सीमांचल में AIMIM का जलवा देखने को मिला। कई सीटों पर पार्टी उम्मीदवारों ने शानदार प्रदर्शन किया, जिससे इस क्षेत्र में ओवैसी की पकड़ और मजबूत दिखाई दे रही है—और यह नतीजे महागठबंधन के लिए गंभीर चिंता का विषय बन चुके हैं।

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