सिंगरौली। मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले के धीरौली कोल ब्लॉक में पिछले एक महीने से जारी बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई अब सिर्फ स्थानीय मुद्दा नहीं रही, बल्कि राष्ट्रीय बहस का विषय बन चुकी है। भारी मशीनों और बड़ी संख्या में तैनात पुलिस बल के बीच जंगलों की कटाई लगातार जारी है, जिससे इलाके के आदिवासी समुदाय में गहरा आक्रोश और चिंता देखने को मिल रही है। स्थानीय नेताओं के साथ प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भी मौके पर पहुंचे और विरोध प्रदर्शन किया, जिसके बाद यह मामला राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आ गया।
आदिवासियों का कहना है कि जंगल लगाना बेहद कठिन होता है, लेकिन पीढ़ियों से मौजूद प्राकृतिक जंगलों को बचाने की कोशिश तक नहीं की जा रही। विकास के नाम पर हो रही यह कटाई पूरे पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर नुकसान पहुंचा रही है। लोगों को डर है कि इससे हवा की गुणवत्ता बिगड़ेगी, तापमान बढ़ेगा और जल स्रोतों पर भी इसका सीधा असर पड़ेगा।
कलेक्टर गौरव बैनल का कहना है कि कटाई के बदले प्रदेश के अन्य जिलों में बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण कराया जाएगा, लेकिन स्थानीय लोगों का सवाल है कि क्या कहीं और पौधे लगाकर सिंगरौली के सदियों पुराने जंगलों की भरपाई की जा सकती है। आदिवासियों का कहना है कि यहां सिर्फ पेड़ नहीं, बल्कि पूरा इको सिस्टम खत्म किया जा रहा है, जिसकी भरपाई संभव नहीं है।
आदिवासी समुदाय का आरोप है कि उन्हें दिया जा रहा मुआवजा मौजूदा महंगाई के हिसाब से बिल्कुल भी पर्याप्त नहीं है। उनका कहना है कि इस राशि से न तो कहीं और जमीन खरीदी जा सकती है और न ही सम्मानजनक जीवन संभव है। विस्थापन की स्थिति में वे उचित मुआवजे के साथ शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी बुनियादी सुविधाओं की मांग कर रहे हैं और मौजूदा विस्थापन नीति को नाकाफी बता रहे हैं।
गौरतलब है कि कांग्रेस की 12 सदस्यीय टीम सिंगरौली पहुंची और आदिवासियों से मुलाकात कर धरना-प्रदर्शन किया। टीम ने पूरे मामले की रिपोर्ट तैयार कर केंद्रीय नेतृत्व को सौंप दी है। अब सबकी नजर इस बात पर है कि विपक्ष इस मुद्दे पर आगे क्या कदम उठाता है और क्या सिंगरौली के आदिवासियों को न्याय मिल पाएगा।

