बिहार चुनाव 2025: महागठबंधन में दरार! सीट न मिलने पर JMM का अलग राह पर चलने का ऐलान, BJP ने मिर्जा गालिब का शेर सुनाकर साधा तंज

बिहार विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे करीब आ रहा है, वैसे-वैसे महागठबंधन के भीतर तनाव और मतभेद खुलकर सामने आने लगे हैं। अब झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) ने महागठबंधन से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने का बड़ा ऐलान कर दिया है। हेमंत सोरेन बिहार में अपने दल के लिए सीटों की मांग कर रहे थे, लेकिन राजद और कांग्रेस के साथ कई दौर की बैठकों के बावजूद बात नहीं बन सकी। आखिरकार, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने गठबंधन से नाता तोड़ते हुए खुद का रास्ता अलग कर लिया।

JMM महासचिव और प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने साफ कहा है कि पार्टी बिहार की छह विधानसभा सीटों – चकाई, धमदाहा, कटोरिया, मनिहारी, जमुई और पीरपैंती – पर अपने दम पर चुनाव लड़ेगी। इन सीटों पर मतदान 11 नवंबर को होगा। भट्टाचार्य ने कहा, “हमने सम्मान की उम्मीद की थी, लेकिन जब सम्मान नहीं मिला, तो हमने खुद अपनी राह चुन ली।”

इसी के साथ JMM ने अपने 20 स्टार प्रचारकों की सूची भी जारी कर दी है, जिसमें खुद हेमंत सोरेन सबसे आगे रहेंगे। पार्टी का कहना है कि उसने बिहार चुनाव के लिए पूरी तैयारी कर ली है। भट्टाचार्य ने याद दिलाया कि झारखंड विधानसभा चुनाव में JMM ने अपने सहयोगियों — कांग्रेस और राजद — को सम्मानजनक सीटें दी थीं। 2019 के झारखंड चुनाव में राजद को सात सीटें दी गईं, जिनमें से उसने सिर्फ एक पर जीत हासिल की, फिर भी गठबंधन धर्म निभाते हुए JMM ने उसे मंत्री पद दिया।

उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि “हमने हमेशा सहयोगियों का सम्मान किया, लेकिन अब वही सहयोगी हमें नजरअंदाज कर रहे हैं।” भट्टाचार्य ने यह भी चेतावनी दी कि अगर बिहार में JMM की उपेक्षा जारी रही, तो इसका नुकसान महागठबंधन को ही उठाना पड़ेगा, क्योंकि कई सीटों पर JMM का सीधा असर है।

इधर, भाजपा ने इस पूरे घटनाक्रम पर चुटकी लेते हुए महागठबंधन पर तीखा तंज कसा है। झारखंड भाजपा प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने कहा कि JMM को बिहार में एक भी सीट न मिलना उसकी “राजनीतिक बेइज्जती” है। उन्होंने व्यंग्य करते हुए मिर्जा गालिब का मशहूर शेर दोहराया —
“बड़े बे-आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले…”

शाहदेव ने हेमंत सोरेन पर सवाल उठाया कि क्या वे इस अपमान का बदला लेने के लिए अपने मंत्रिमंडल से राजद के मंत्री को हटा पाएंगे, या फिर अपमान का घूंट पीकर चुप बैठ जाएंगे।

अब सवाल ये है कि क्या हेमंत सोरेन का ये फैसला महागठबंधन के लिए सिर्फ एक झटका है या आने वाले समय में बड़ा राजनीतिक भूकंप साबित होगा? बिहार की सियासत में अब ये नया मोड़ सबकी निगाहें अपनी ओर खींच रहा है।

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