बिहार कांग्रेस में चुनाव से पहले भूचाल, आनंद माधव के इस्तीफे से मचा सियासी बवाल

पटना। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले महागठबंधन के भीतर जबरदस्त खलबली मच गई है। कांग्रेस में टिकट बंटवारे को लेकर मचे घमासान के बीच पार्टी के वरिष्ठ नेता और रिसर्च कमेटी के चेयरमैन आनंद माधव ने अपने सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने अपना इस्तीफा पत्र सीधे राहुल गांधी को भेजते हुए पार्टी नेतृत्व पर गंभीर आरोप लगाए हैं।

आनंद माधव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बिहार कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अल्लावरु और प्रदेश अध्यक्ष राजेश कुमार राम पर पक्षपात का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने उन नेताओं को टिकट दिया जो हाल ही में पार्टी में शामिल हुए, जबकि पुराने और समर्पित कार्यकर्ताओं को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर दिया गया। उनका कहना था कि पार्टी के पास टिकट बंटवारे का कोई पारदर्शी पैमाना नहीं है — “जो 33 हजार वोटों से हारे उन्हें टिकट मिल गया, और जो सिर्फ 113 वोटों से हारे उन्हें बाहर कर दिया गया।”

यहीं नहीं, पार्टी के अंदर से कई अन्य नेताओं की भी नाराज़गी खुलकर सामने आई। कांग्रेस विधायक छत्रपति यादव ने कहा कि बिहार प्रभारी ने प्रदेश अध्यक्ष और विधायक दल के नेता पर दबाव डालकर मनमाने निर्णय करवाए। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि यादव समाज के साथ खुला अन्याय हुआ है, क्योंकि एकमात्र यादव विधायक को टिकट से वंचित कर दिया गया है।

पूर्व विधायक गजानन शाही ने भी अपनी नाराज़गी जताते हुए कहा कि वे सिर्फ 113 वोट से चुनाव हारे थे, फिर भी टिकट नहीं मिला। बांका कांग्रेस जिलाध्यक्ष और कई अन्य जिला पदाधिकारियों ने आरोप लगाया कि टिकट वितरण से पहले किसी भी जिलाध्यक्ष से राय तक नहीं ली गई। उन्होंने कहा कि “दिल्ली से जो साजिश रची गई थी, वह अब पटना तक पहुंच चुकी है। राहुल गांधी तक हमारी आवाज़ नहीं पहुंचने दी जा रही।”

विवाद यहीं नहीं थमा। कांग्रेस की महिला प्रदेश अध्यक्ष को टिकट नहीं मिलने पर कई नेताओं ने इसे महिला नेतृत्व की सीधी अनदेखी बताया। जिलाध्यक्षों ने चेतावनी दी कि ऐसे फैसलों से कांग्रेस की जमीनी पकड़ कमजोर हो रही है। कुछ नेताओं ने तो यहां तक कहा कि “अब कांग्रेस के भीतर एक स्लीपर सेल तैयार हो गया है, जो पार्टी को अंदर से खोखला कर रहा है।”

बिहार कांग्रेस में ये बगावत चुनाव से ठीक पहले पार्टी के लिए बड़ा झटका मानी जा रही है, और अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि राहुल गांधी और शीर्ष नेतृत्व इस बगावत को कैसे संभालते हैं।

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