पटना। बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस पार्टी में बड़ा फेरबदल देखने को मिला है। टिकट विवाद और लगातार बढ़ती गुटबाजी के बीच हाईकमान ने बड़ा कदम उठाते हुए कृष्णा अल्लावरु को हटाकर अनुभवी नेता अविनाश पांडेय को बिहार का नया प्रभारी नियुक्त किया है। यह बदलाव ऐसे समय पर हुआ है जब पार्टी भीतर से बिखराव और नाराज़गी के दौर से गुजर रही है।
सूत्रों के मुताबिक, टिकट बंटवारे को लेकर कांग्रेस नेताओं में गहरा असंतोष था। कई स्थानीय नेताओं ने प्रभारी कृष्णा अल्लावरु और प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम पर गंभीर आरोप लगाए — यहां तक कि टिकट के लिए पैसों के लेनदेन की बातें भी सामने आईं। नतीजा ये हुआ कि कई नेताओं ने पार्टी छोड़ दी और कांग्रेस की स्थिति कमजोर पड़ती चली गई। ऐसे माहौल में आलाकमान ने त्वरित एक्शन लेते हुए अल्लावरु को हटाया और राज्य की कमान अविनाश पांडेय के हाथों में सौंप दी।
पदभार संभालने के बाद अविनाश पांडेय ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा — “कल से बिहार प्रवास पर रहूंगा। चुनाव से पहले संगठनात्मक समन्वय और रणनीति निर्माण की जिम्मेदारी संभालूंगा। यह चुनाव केवल सत्ता परिवर्तन का नहीं, बल्कि बिहार की दिशा तय करने का निर्णायक अवसर है। एनडीए सरकार ने राज्य को बेरोजगारी और विकासहीनता की ओर धकेला है, अब जनता बदलाव के लिए तैयार है।”
कांग्रेस के अंदर इस फैसले को एक बड़े डैमेज कंट्रोल कदम के रूप में देखा जा रहा है। हाईकमान चाहता है कि चुनाव से पहले संगठन को फिर से जोड़ा जाए, कार्यकर्ताओं का भरोसा वापस लाया जाए और गठबंधन दलों के साथ तालमेल मजबूत किया जाए।
अविनाश पांडेय का राजनीतिक सफर लंबा और अनुभवों से भरा रहा है। नागपुर के मूल निवासी पांडेय पेशे से वकील हैं और लंबे समय से कांग्रेस संगठन में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। वे महाराष्ट्र विधान परिषद के सदस्य रह चुके हैं, राज्यसभा सांसद भी रहे हैं, और 2023 में राहुल गांधी ने उन्हें उत्तर प्रदेश का प्रभारी महासचिव बनाया था। उनके नेतृत्व में यूपी में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के गठबंधन ने 2024 लोकसभा चुनाव में उल्लेखनीय प्रदर्शन किया था।
लेकिन बिहार की चुनौती उतनी आसान नहीं है। यहां कांग्रेस को न सिर्फ संगठनात्मक संकट से उबरना है, बल्कि गठबंधन राजनीति के पेचीदे समीकरणों को भी संभालना है। हालांकि अविनाश पांडेय की एंट्री से कार्यकर्ताओं में नया उत्साह दिख रहा है। अब सवाल यही है — क्या उनका अनुभव और रणनीति बिहार में कांग्रेस को फिर से मजबूत कर पाएगी, या फिर यह बदलाव भी चुनावी रण में असर दिखाने से चूक जाएगा?

