मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले में 50 साल की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और बीएलओ अनिता नागेश्वर की इलाज के दौरान मौत ने पूरा प्रशासन हिलाकर रख दिया है। नागपुर ले जाते वक्त उन्होंने रास्ते में ही दम तोड़ दिया। जैसे ही खबर फैली, तहसीलदार, महिला बाल विकास विभाग के अधिकारी और बड़ी संख्या में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता उनके घर पहुंच गए।
अनिता के पति और बेटी का बड़ा आरोप है—SIR यानी सर्वे और रिपोर्टिंग से जुड़े काम का दबाव इतना बढ़ गया था कि वो तनाव में आ गईं और बीमारी के दौरान भी उन्हें राहत नहीं मिल सकी। उनका कहना है कि अगर काम का बोझ कम होता, तो शायद आज अनिता जिंदा होतीं।
लेकिन जिला प्रशासन की ओर से जारी बयान कुछ और ही कहानी बताता है। जनसंपर्क कार्यालय के मुताबिक, अनिता नागेश्वर की मौत टायफाइड और पीलिया के कारण हुई। बताया गया कि 13 नवंबर से उनका इलाज महाराष्ट्र के गोंदिया में चल रहा था। हालत बिगड़ने पर उन्हें नागपुर रेफर किया गया, लेकिन रास्ते में ही उनका लीवर इंफेक्शन बढ़ने से निधन हो गया।
अनिता कुछ दिनों से बीएलओ के रूप में ड्यूटी कर रही थीं, लेकिन 15 नवंबर से उनकी छुट्टी मंजूर कर दी गई थी और उनका काम सहायक बीएलओ अमृतलाल पारधी को सौंप दिया गया था। बाद में 18 नवंबर से एक और शिक्षक धनराज भलावी को भी सहायता के लिए लगाया गया था। इसके बावजूद उनकी तबीयत में सुधार नहीं हुआ, और आखिरकार नागपुर पहुंचने से पहले ही उन्होंने अंतिम सांस ले ली।
एक तरफ परिवार काम के बोझ को मौत की वजह बता रहा है, और दूसरी तरफ प्रशासन बीमारी को कारण मान रहा है… लेकिन इस दुखद घटना ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के काम के दबाव और सुरक्षा को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं।

