पटना। संविधान दिवस से ठीक पहले बिहार का राजनीतिक माहौल अचानक गर्म हो गया है। सड़क पर चलने वाला हर नागरिक आज संविधान, अधिकारों और राजनीति के असली मायने तलाश रहा है। इसी बीच बिहार भाजपा के अध्यक्ष और राज्य सरकार में मंत्री दिलीप जायसवाल का बयान सियासी बहस का बड़ा मुद्दा बन गया है। उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि पार्टी में नेतृत्व की भारी कमी है, और राहुल गांधी बिना किसी ठोस मुद्दे के राजनीति कर रहे हैं। उनका आरोप था कि कांग्रेस ने बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर को वह सम्मान कभी नहीं दिया जिसके वे हकदार थे, और अब वही लोग संविधान का नाम लेकर सड़क पर उतरने की तैयारी कर रहे हैं, तो सवाल उठना लाज़मी है—आखिर किस मुंह से?
इधर कांग्रेस इन आरोपों का जवाब राजनीतिक मंचों पर नहीं, बल्कि जनता के बीच जाकर दे रही है। 26 नवंबर को ‘संविधान बचाओ’ कार्यक्रम के तहत प्रदेश के सभी जिला मुख्यालयों में विचार-गोष्ठियाँ आयोजित की जाएंगी। कांग्रेस का कहना है कि ये सिर्फ राजनीतिक गतिविधियाँ नहीं, बल्कि लोकतंत्र को मजबूत करने का संकल्प है। पार्टी नेताओं का दावा है कि संविधान पर बढ़ते खतरों को देखते हुए जनता को जागरूक करना पहले से कहीं ज्यादा जरूरी हो गया है।
गांवों और कस्बों में रहने वाले लोग भी इन घटनाओं को ध्यान से देख रहे हैं। एक सब्जी बेचने वाले युवक ने कहा कि नेताओं की बहस अपनी जगह है, पर जनता को वही सरकार चाहिए जो संविधान के हिसाब से चले। कॉलेज के छात्र भी मानते हैं कि संविधान पर संवाद होना चाहिए, लेकिन चुनावी आरोप-प्रत्यारोप से हटकर।
इसी माहौल के बीच कांग्रेस 14 दिसंबर को दिल्ली में होने वाली “वोट चोर-गद्दी छोड़ महारैली” की तैयारियों में भी पूरी ताकत झोंक रही है। जिला इकाइयों को तेजी से काम करने के निर्देश दिए गए हैं। सोशल मीडिया, पोस्टर अभियान और जनता से सीधा संवाद—हर माध्यम का इस्तेमाल करके संदेश को घर-घर पहुँचाने की रणनीति बनाई जा रही है।

