पटना। बिहार विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर पहली बार मीडिया के सामने आए और अपनी बड़ी बातें स्पष्ट शब्दों में रखीं। पीके ने माना कि 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारने के बावजूद जन सुराज जनता का भरोसा नहीं जीत पाया। कुछ सीटों पर उम्मीदवारों का नामांकन वापस लेना और एक सीट पर नामांकन ही नहीं भरना—इन सबके पीछे उन्होंने बीजेपी पर दबाव बनाने का आरोप लगाया, लेकिन साफ कहा कि यह हार उनकी ही जिम्मेदारी है।
प्रशांत किशोर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि वे तीन साल पहले “व्यवस्था परिवर्तन” के संकल्प के साथ बिहार लौटे थे, लेकिन इस चुनाव में न सत्ता परिवर्तन हुआ और न ही व्यवस्था परिवर्तन। जनता का विश्वास न जीत पाने पर उन्होंने पूरी जिम्मेदारी खुद ली। उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने जीत हासिल की है, वे अब बिहार की जिम्मेदारी निभाएँ और जनता के लिए काम करें।
हार के बाद पीके ने बड़ा ऐलान करते हुए बताया कि 20 नवंबर को चंपारण के भितिहरवा आश्रम में वे एक दिन के अनशन पर बैठेंगे, ताकि वे आत्ममंथन कर सकें और जनता के बीच फिर से ईमानदारी से संवाद स्थापित कर सकें।
प्रशांत किशोर ने साफ कहा कि वे बिहार नहीं छोड़ने वाले—ये सिर्फ लोगों का भ्रम है। वे अपने संकल्प पर कायम हैं और अब तक की मेहनत से दोगुनी मेहनत करके बिहार के सुधार के लिए संघर्ष जारी रखेंगे। साथ ही उन्होंने दोहराया कि वे राजनीति से संन्यास के अपने बयान पर कायम हैं, लेकिन बिहार के लोगों के लिए उनका सफ़र अभी रुकने वाला नहीं।
पीके ने राज्य सरकार को भी चुनौती दी। उन्होंने कहा—“आपने 1.5 करोड़ महिलाओं को 2 लाख रुपए स्वरोजगार के लिए देने का वादा किया है। अगर 6 महीने में ये वादा पूरा नहीं हुआ, तो साफ हो जाएगा कि चुनाव से पहले 10-10 हजार रुपए सिर्फ वोट खरीदने के लिए दिए गए थे।”
प्रशांत किशोर ने कहा कि उनका उद्देश्य जनता के बीच सच और समाधान लेकर जाना है। वे पीछे हटने वाले नहीं—बिहार को सुधारने की उनकी जिद पहले से भी ज्यादा मजबूत हो चुकी है।

