भोपाल। मध्यप्रदेश में आयोजित राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की कार्यशाला में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने शिक्षा सुधारों पर बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि समाज को स्कूल और कॉलेज के संचालन की जिम्मेदारी लेनी चाहिए जबकि सरकार वेतन देने का कार्य करे। उनका कहना था कि पुराने समय में यही व्यवस्था थी, गांव खुद शिक्षण संस्थानों को चलाते थे, जिससे शिक्षा व्यवस्था अधिक मजबूत और सुव्यवस्थित हुआ करती थी। यदि हम पुरानी पद्धति की ओर लौटें, तो शिक्षा तंत्र और अधिक सुदृढ़ हो सकता है।
धर्मेंद्र प्रधान ने आगे कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू हुए पांच साल हो चुके हैं और मध्यप्रदेश इस काम में देश का अग्रणी राज्य बनकर उभरा है। प्रदेश की युवा आबादी लगभग दो करोड़ है और आने वाले 25 साल प्रदेश के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। यहां के युवाओं को नौकरी मांगने वाले नहीं बल्कि नौकरी देने वाले नागरिक बनाने की तैयारी की जा रही है। उन्होंने कहा कि अगर मध्यप्रदेश विकसित होगा तो भारत विकसित होगा, और यदि शिक्षा विकसित होगी तो देश निश्चित रूप से विकसित राष्ट्र बनेगा।
कार्यक्रम के दौरान मंत्री ने एक अनोखी अपील करते हुए कहा कि स्कूलों में कार्यक्रमों के समय गुलदस्ता देने की परंपरा खत्म होनी चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि इसके बजाय फलों की टोकरी दी जाए, ताकि बच्चों को पौष्टिक आहार मिल सके। उनका कहना था कि राज्य में लाखों बच्चे ऐसे हैं जिन्होंने परिस्थितियों के कारण कई फल कभी देखे तक नहीं। यदि बच्चों को पौष्टिक भोजन मिले तो उनमें भी अगले अब्दुल कलाम निकल सकते हैं।
कार्यशाला में मौजूद राज्यपाल मंगुभाई पटेल ने भी केंद्रीय मंत्री के सुझावों का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि गुजरात में स्कूलों में बच्चों को फल देने की परंपरा लंबे समय से है, जिससे बच्चों के स्वास्थ्य में उल्लेखनीय सुधार देखने को मिला है। राज्यपाल ने इस बात पर भी जोर दिया कि बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी केवल शिक्षक की नहीं, बल्कि परिवार और अभिभावकों की भी बड़ी भूमिका होती है। शिक्षा नीति 2020 को समझकर ही सही दिशा में काम किया जा सकता है।

